नमस्कार दोस्तों,
हिंदू कानून के मुताबिक एक विधवा या बेटी वसीयत के बिना, पिता की मृत्यु के बाद स्व. अर्जित संपत्ति को विरासत में लेने में सक्षम: सुप्रीम कोर्ट
केस का नाम -अरुणाचल गौंडर (मृत) बनाम पोन्नुस्वामी 20 जनवरी 2022 (SC)
पीठ: न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी
इस केस में विचाराधीन संपत्ति निश्चित रूप से मारप्पा गोंडर की स्व-अर्जित संपत्ति थी। अपीलकर्ता द्वारा उठाया गया प्रश्न यह था कि -
क्या स्वर्गीय गोंडर की एकमात्र जीवित पुत्री कुपायी अम्मल को ये सम्पत्ति उत्तराधिकार से विरासत में मिलेगी और उत्तरजीविता द्वारा हस्तांतरित नहीं होगी ?
क्या एक इकलौती बेटी को अपने पिता की अलग- अलग संपत्ति( हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम,1956 के लागू होने से पहले) विरासत में मिल सकती है?
इस प्रश्न का उत्तर देते हुए सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने प्रथागत हिंदू कानून और न्यायिक घोषणाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि एक विधवा या बेटी के अधिकार को स्व-अर्जित संपत्ति या एक हिंदू पुरुष के बिना वसीयत मौत होने पर सहदायिक यह पारिवारिक संपत्ति के विभाजन के माध्यम से प्राप्त संपत्ति की भी हकदार होगी।
यदि किसी महिला की मृत्यु बिना वसीयत के हो जाती है, तो उसके पिता से विरासत प्राप्त संपत्ति पिता के उत्तराधिकारियों को दी जाएगी और उसके पति की ओर से प्राप्त संपत्ति उसके पति के उत्तराधिकारी को सौंप दी जाएगी, यदि वह निःसंतान मर जाती है। इसे न केवल पुराने प्रथागत हिंदू कानून के तहत बल्कि विभिन्न न्यायिक घोषणाओं के तहत भी अच्छी तरह से मान्यता प्राप्त है।
रामासामी गौंडर की बेटी थंगम्मल द्वारा विभाजन के लिए मुकदमा दायर किया गया था, जिसने सूट की संपत्ति 1/5वें हिस्से का दावा किया है, जिसमें आरोप लगाया गया था कि वादी और प्रतिवादी एलायाम्मल और नल्लम्मल और एक रामायीम्मल, गुरुनाथ गौंडर की बहनें हैं, ये सभी पांचों रामासामी गौंडर की संतान हैं । उक्त रामासामी गौंडर का मरप्पा गोंडर के नाम से एक बड़ा भाई था। रामासामी गौंडर, अपने भाई मरप्पा गौंडर से पहले मर गया था, जिसकी मृत्यु 14.04.1957 को हुई थी, वह अपने पीछे कुपायी अम्मल के नाम से इकलौती बेटी को छोड़ा गया था, जो 1967 में बिना किसी संतान के मर गई थी ।
अपीलकर्ता द्वारा स्थापित आगे का मामला यह था कि मरप्पा गौंडर की मृत्यु के बाद, उनकी संपत्ति कुपायी अम्मल को विरासत में मिली थी और 1967 में उनकी मृत्यु पर, रामासामी गौंडर के सभी पांच बच्चे कानूनी प्रतिनिधि के रूप में व गुरुनाथ गौंडर जूनियर की चार संतानें थीं जिनके नाम पोन्नुस्वामी, थंगम्मल, पपेयी और कन्नम्मल थे । थंगम्मल की एक बेटी अरुणाचल गौंडर है और रमाईमल की दो संतानें हैं ।
कोर्ट ने कहा कि ‘’ धारा 15 (2) को लागू करने में विधायिका का मूल उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि निर्वसीयत और निर्वसीयत मरने वाली हिंदू महिला को विरासत में मिली संपत्ति स्रोत को वापस मिल जाए।‘’
धारा 14 (I) ने महिलाओं के स्वामित्व वाली सभी सीमित संपदाओं को पूर्ण संपदा में परिवर्तित कर दिया और वसीयत या वसीयतनामा के अभाव में इन संपत्तियों का उत्तराधिकार हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 15 के अनुरूप होगा, जिसे इस प्रकार पढ़ा जाता है ;- ‘’ धारा-15’’ हिंदू महिला के मामले में उत्तराधिकार के सामान्य नियम-(1) निर्वसीयत मरने वाली हिंदू महिला की संपत्ति धारा 16 में निर्धारित नियमों के अनुसार न्यागत होगी,-
( ए ) सबसे पहले, बेटे और बेटियों ( किसी भी पूर्व मृत बेटे या बेटी के बच्चों सहित ) और पति पर ;
( बी ) दूसरे, पति के वारिसो पर;
( सी ) तीसरे, माता और पिता पर;
( डी ) चौथा, पिता के उत्तराधिकारियों पर, और
( ई ) अंत में, माँ के वारिसों पर ।
धारा 15 की उप-धारा (1)की योजना यह दर्शाती है कि निर्वसीयत मरने वाली हिंदू महिलाओं की संपत्ति उसके अपने उत्तराधिकारियों को हस्तांतरित की जानी है, जिसकी सूची धारा 15 ( ए ) के खंड ( ए ) से (ई) में वर्णित है।
भज्या बनाम गोपिकाबाई और अन्य में धारा 15 की उप-धारा (2) के तहत निर्वसीयत के वारिसों की पहचान करने की प्रक्रिया को समझाया गया है। [1978] 3 एससीआर 561। वहाँ इस न्यायालय ने पाया कि जिस नियम के तहत निर्वसीयत की संपत्ति हस्तांतरित होगी, वह अधिनियम की धारा 16 के नियम 3 द्वारा विनियमित है। धारा 16 के नियम 3 में प्रावधान है कि ‘’धारा ( बी ) और ( डी ) में निर्दिष्ट वारिसों पर निर्वसीयत की संपत्ति का हस्तांतरण।
इस निर्णय से पहले, 11 अगस्त 2020 को सर्वोच्च न्यायालय ने विनीता शर्मा बनाम राकेश शर्मा बनाम अन्य के मामले में एक हिंदू महिला के संयुक्त कानूनी उत्तराधिकारी होने और पुरुष उत्तराधिकारियों के समान संपत्ति को विरासत में लेने के अधिकार पर भी विस्तार किया।
उच्च न्यायालय ने निम्नलिखित पर गौर किया –
मिताक्षरा स्कूल ऑफ लॉ - भी उत्तराधिकार द्वारा विरासत को मिताक्षरा स्कूल ऑफ लॉ द्वारा मान्यता प्राप्त है, लेकिन उत्तराधिकार द्वारा ऐसी विरासत एक व्यक्ति, पुरुष या महिला के स्वामित्व वाली संपत्ति तक सीमित है और ऐसी सम्पत्ति के उत्तराधिकारी के रूप में महिलाएं शामिल हैं। हिंदू लॉ ऑफ इनहेरिटेंस (संशोधन ) अधिनियम, 1929 से पहले मिताक्षरा के बंगाल, बनारस और मिथिला उप-विद्यालयों से केवल पांच महिला संबंधों को विरासत के हकदार होने के रूप में मान्यता दी थी।
‘’विधवा, बेटी, माता, पैतृक दादी और परदादी-नानी के रिश्ते।‘’
मद्रास सब स्कूल ऑफ लॉ ने बड़ी संख्या में महिला उत्तराधिकारियों की वंशानुगत क्षमता को मान्यता दी है, जो कि बेटे कि बेटी, बेटी की बेटी और बहन कि हैं, जिन्हें वारिस के रूप में स्पष्ट रूप से हिंदू कानून संशोधन अधिनियम, 1929 में वारिस के रूप में नामित किया गया है। बम्बई और मद्रास में ‘’बंधु’’ के रूप में स्थान दिया गया है।
बॉम्बे स्कूल ऑफ लॉ जो महिलाओं के लिए सबसे अधिक उदार है, कई अन्य महिला उत्तराधिकारियों को मान्यता दी, जिनमें सौतेली बहन, पिता की बहन और परिवार में विवाहित महिला जैसे सौतेली माँ, बेटी की विधवा और भाई की विधवा शामिल हैं।
अतः स्पष्ट है कि एक बेटी वास्तव में पिता की अलग संपत्ति को विरासत में लेने में सक्षम है।
174 वे विधि आयोग ने हिंदू कानून के तहत सुधारों का प्रस्ताव करते हुए महिलाओं के संपत्ति अधिकार पर अपनी रिपोर्ट मे कहा-
मिताक्षरा कानून भी उत्तराधिकार द्वारा विरासत को मान्यता देता है, लेकिन केवल एक पुरुष या महिला को स्वामित्व वाली संपत्ति के लिए मिताक्षरा कानून द्वारा महिलाओं को इस तरह की संपत्ति के उत्तराधिकारी के रूप में शामिल किया गया है।
कोर्ट ने कहा कि स्पष्टतः-
प्राचीन ग्रंथों के साथ-साथ स्मृति, विभिन्न प्रसिद्ध विद्वानों द्वारा लिखी गई टिप्पणियों और यहाँ तक कि न्यायिक घोषणाओं ने कई महिला वारिसों के अधिकार को मान्यता दी है। पत्नी और बेटी उनमें से सबसे प्रमुख हैं। परिवार में महिलाओं के भरण-पोषण के अधिकार हर मामले में बहुत महत्वपूर्ण अधिकार है।
यदि एक हिंदू पुरुष की निर्वसीयत मृत्यु होने पर उसकी स्वअर्जित संपत्ति है जो एक सहदायगी या एक पारिवारिक संपत्ति के विभाजन में प्राप्त कि गई है तो वह उत्तरजीविता द्वारा नहीं बल्कि विरासत द्वारा हस्तांतरित होगी, ओर ऐसे हिंदू की बेटी अन्य सपिंड के लिए वरीयता में ऐसी संपत्ति विरासत में पाने की हकदार है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले के माध्यम से हिंदू उत्तराधिकार नियम, 1956 की जड़ और प्रथागत हिंदू कानून के बल्कि प्रगतिशील रूख और महिलाओं को उनके पिता की संपत्तियों की विभिन्न क्षमताओं में सही उत्तराधिकारी के रूप में मान्यता देने की विस्तार से जांच कि है। उत्तराधिकार का नियम निकटता के नियम के अनुसार संचालित होगा और एकमात्र जीवित बेटी की अपने पिता की अलग अलग संपत्तियों की हकदारी होगी और अदालत ने कहा है कि विचाराधीन संपत्ति गौंडर की स्वअर्जित संपत्ति थी, जबकि परिवार उनकी मृत्यु के बाद संयुक्त था इसलिए उनके एकमात्र जीवित बेटी कुपायी अम्मल को विरासत में यह संपत्ति मिलेगी संपत्ति उत्तरजीविता द्वारा हस्तांतरित नहीं होगी।
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